Wednesday, April 17, 2019

बहुत खूबसूरत हो ......

बहुत लगती हो 
जब रोकती हो तुम 
बुदबुदाते शब्दों को 
अपने कोमल होंठों के बीच, 

जब तुम्हारी आंखों का पानी 
पलकों की कोर छू कर 
लौट जाता है 
बहने लगता है भीतर उतर कर 
तब भी, 
और जब तुम्हारे होंठों के किनारे 
हल्के से सिकुड़ कर फैल जाते हैं 
तब बहुत खूबसूरत लगती हो। 

तब भी तुम खूबसूरत लगती हो 
जब मेरे किसी कड़वे वचन से 
तुम्हारी गुलाबी आंखों में 
बनने लगते हैं बरबस ही लाल डोरे 
और हां, तब भी तुम खूबसूरत लगती हो 
जब मेरी दूरी के अहसास मात्र से 
बदलने लगता है तुम्हारे चेहरे का रंग। 

जब गुस्से से तुम्हारे गाल दहकते हैं 
और गले में लफ्ज अटकते हैं, 
तुम शायद विश्वास नहीं करोगी, उस वक्त भी तुम खूबसूरत लगती हो। 
सच यह है कि 
हमारे-तुम्हारे बीच 
यह जो का नवांकुर फूटा है 
इसने मेरे भीतर 
इतने रंग, 
इतनी सुगंध 
और इतनी खूबसूरती भर दी है कि तुम हर रूप में मुझे खूबसूरत ही लगती हो। 

पता नहीं। अभी तो इस कविता के हर शब्द में तुम खूबसूरत लग रही हो।


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