Friday, September 8, 2017

Jeevan Aur Rishtey....

आकाश से पटल तक
जीव चलता मात्र रिश्तों पर
कुछ लंबे समय तक टिकते हैं
कुछ बीच में दम तोड़ देते हैं
कुछ रिश्ते पैसों से बनते हैं
कुछ प्रेम प्रतीक भी होते हैं
कुछ क्षण भर के,कुछ युग-युग के
रिश्तों पर जीवन टिकता है
रिश्तों से जीवन बनता है
रिश्तों में दरार, विश्वास की कमी
रिश्तों में मिठास, प्रेम अनुभूति
एक जीवन, अनेक रिश्ते
जीवन से जुड़े सारे रिश्ते
निर्जीव सजीव सभी रिश्ते
रिश्तों का प्रतीक, स्वयं रिश्ते

RishteY......

रिश्ते कुछ खास होते हैं
शायद उनकी डोर उस प्रभु के पास होती है
जो वहां है जहां थोड़ी सी हवा है,थोड़ा सा आसमान है
अक्सर राह चलते कुछ रिश्ते हमें पकड़ कर ले जाते हैं वहां
जहां हम कभी नहीं गये होते
हम चीखते हैं कि नहीं जाना चाहते इस जहां को छोड़ कर
मगर एक हवशी ला पटकता है नए दरख्तों के तले
चिल्लप-पों के बीच अपनी ही आवाज लौट कर
दे जाती है दस्तक
आखिर क्यों हमें आज हर रिश्ते से डर लगता है?
रिश्ते तो रुई के फाहे है
फिर क्यों हम उन्हें नासूर समझ कर ठुकरा देते हैं?
शायद यह समय ही ऐसा है कि-
'हमें अपनी ही परछाईं से डर लगता है'
बदहवास से हम घूमते हैं नंगे पांव
शीशे की दीवारों में अपना माथा लटकाए
हम टहलते हैं सिर्फ अपने पुरवे की ओर
अजीब सी खलल मथ डालती है
और उसकी तपिश में हम सोचते हैं-
काश! कोई अपना भी होता ! 

इंतज़ार

                                                                पल जब इंतज़ार का हो  कुछ इस तरह इंतज़ार करना जैसे जहां में तेरे लिए बस मैं ही ...