Monday, November 13, 2017

New Poem of Important Person....

आत्म मन्थन के क्षण
मत हो राही तू विकल
माना बहुत है हो चुका
बीता जो उस पर रो चुका
किन्तु अब क्यू काल कलवित हो रहा
प्रत्यक्ष बहुत कुछ खो रहा
समय नही स्वर गान का
काल है सन्धान का
प्रत्यंचा को खींच ले
लक्ष्य मुठ्ठी में भींच ले
सो लिया तू बहुत
न समय अब शेष है
भाग्य भरोसे मिलता वही
श्रम बिंदु से जो अवशेष है
तू संकल्प निर्विकल्प कर
मृत्यु तो निश्चित है भन्ते
क्यूँ न तू जी के मर
जीवन संग्राम में भला
हार आई किसे रास है
किन्तु जो न हारा थका
जीत उसकी दास है।।।।

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